निराला का जीवन परिचय।

निराला का जीवन परिचय | Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi

निराला का जन्म बंगाल के महिषादल राज्य के जिला मिदनापुर में 21 फरवरी 1899 में हुआ था | उनका पैत्रिक निवास स्थान उन्नाव जिले का गढ़कोला गाँव था | पिता पंडित रामसहाय त्रिपाठी जीविका की तलास में बंगाल में आकर बस गए थे | उन्होंने मिदनापुर जिले की महिषादल नामक जमींदारी में में नौकरी कर ली | प्रथम पत्नी के देहावसान के उपरांत पिता ने दूसरी शादी कर ली और उन्हें लेकर महिषादल आ गए | निराला पंडित रामसहाय की दूसरी पत्नी के पुत्र थे |

नाम सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”
उपनाम निराला
जन्म 21 फरवरी 1899
मृत्यु 15 अक्टूबर 1961
जन्म स्थान महिषादल, जिला मिदनापुर, पश्चिम बंगाल
मूल निवास गढ़कूला, जिला उन्नाव
भाषा ज्ञान हिंदी, संस्कृत, बंग्ला, अंग्रेजी
लेखन की भाषा हिंदी
पिता पंडित रामसहाय त्रिपाठी
पत्नी मनोरमा देवी
पुत्र पंडित रामकृष्ण त्रिपाठी
पुत्री सरोज

विषय-सूची

विवाह और पारिवारिक जीवन

निराला का विवाह मनोरमा देवी के साथ मात्र 14 वर्ष की आयु में ही हो गया था | अल्प शिक्षित होने के बावजूद मनोरमा देवी को हिंदी का अच्छा ज्ञान था | हिंदी भाषा में मनोरमा देवी की प्रवीणता का निराला को हिंदी भाषा का कवि बनाने में अतुलनीय योगदान था | पत्नी से उनके प्रेम की प्रगाढ़ता थी | उन्होंने अपनी रचना गीतिका को पत्नी मनोरमा को समर्पित किया है | सुकुल की बीवी नामक रचना में निराला ने अपनी पत्नी मनोरमा देवी का चित्र प्रस्तुत करने के प्रयास किया है |

जब निराला मात्र 20 वर्ष की आयु के थे, तब उनकी पत्नी मनोरमा का देहावसान हो गया | उसके एक वर्ष के उपरांत पिता श्री रामसहाय त्रिपाठी लकवाग्रस्त हो गए और बाद में उनकी मृत्यु हो गयी | उसके उपरांत उनके चाचा का भी देहावसान हो गया | परिवार में बचे पुत्र, पुत्री और चार भतीजों की जिम्मेदारी निराला पर आ गयी |

हालाँकि पिता की मृत्यु के उपरांत उन्हें महिषादल के दरबार में नौकरी मिली, परन्तु वे इससे संतुष्ट नहीं थे | उनके जीवन का यह दौर संघर्ष और निराशा और असफलता का दौर था | धन के अभाव में वे अपने बच्चों के प्रति अपने पिता होने के दायित्व का उचित निर्वहन कर पाने में असफल रहे | विधवा पुत्री सरोज’ की उचित देख-भाल न हो पाने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी जिसने उन्हें अन्दर तक झिंझोड़ दिया | उनका साहित्य ही उनके पारिवारिक अभावों की पूर्ति का साधन बना |

निराला का व्यक्तित्व

निराला जी लम्बे-चौड़े शरीर, बड़ी-बड़ी आँखों वाले एक स्वस्थ और बलिष्ठ शरीर के स्वामी थे | उनके मुख पर सदैव ही मंद मुश्कान की आभा दीप्तिमान रहती | उनका शारीरिक आकर्षण विलक्षण तो था ही, साथ ही उनके आतंरिक व्यक्तित्व भी विशिष्ट था | सहनशीलता और विद्रोह जैसे आदि आतंरिक गुण उनकी रचनाओं में भली-भांति परिलक्षित होते हैं |

निराला के जन्म के तीन वर्ष के उपरांत ही उनकी माता का देहांत हो गया | अल्पायु में ही माँ के स्नेह और वात्सल्य से वंचित निराला का व्यक्तित्व गंभीर और अंतर्मुखी हो गया | महिषादल में जमादार के पद पर आसीन, तीन सौ सिपाहियों के संचालक होने के नाते उनके पिता में एक स्वाभाविक कठोरता थी जिसका खामियाजा निराला को भी भुगतना पड़ता | निराला को बचपन में पिता से काफी मार पड़ती थी | निराला को मारते वक्त पिता रामसहाय भूल जाते थे कि वे उनके इकलौते पुत्र हैं | कई बार तो उनकी तब तक पिटाई की जाती थी जब तक वे बेसुध नहीं हो जाते थे | माँ के स्नेह का आभाव और पिता की कठोरता ने उन्हें कठोर और निर्भीक बना दिया |

बचपन में महिषादल के राजपरिवार के सामीप्य में उन्हें एक ऐसा परिवेश मिला जिससे उनके व्यवहार में भी एक राजसी आभा दीप्तिमान हुयी | सामाजिक रुढियों के खिलाफ विद्रोह उनके व्यक्तित्व का हिस्सा रही | विनोदवृत्ति भी उनके स्वभाव में था | अपने संघर्ष के दिनों में भी वे कभी स्वयं को उदारता और हंसी-मजाक की प्रवृत्ति को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा | उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व विरोधी प्रवृत्तियों का अदभुत मिश्रण रहा है |

रामकृष्ण मिशन से उनके जुडाव और विवेकानंद के विचारों ने भी उनके व्यक्तित्व निर्माण में अहं भूमिका निभाई | उनमें दार्शनिकता और आध्यात्म के विकास का भी श्रेय इसे ही दिया जा सकता है | उनके विचारों में स्वामी विवेकानंद जैसी समानता देखी जा सकती है |

शिक्षा और लेखन

निराला की प्रारंभिक शिक्षा का आरम्भ एक बंग्ला पाठशाला में हुयी | उन्होंने अपने हाईस्कूल में अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया | साथ ही वे हिंदी, संस्कृत तथा बंग्ला भाषाओं को घर पर ही स्वतन्त्र रूप से सीखते रहे |

वर्ष 1918 से 19222 तक उन्होंने महिषादल के दरबार में नौकरी की और उसके बाद उन्होंने अपने स्वतन्त्र लेखन का आरम्भ किया |

  • 1922-23 में रामकृष्ण मिशन के ‘समन्वय’ का संपादन किया |
  • 1923 कलकत्ता से पब्लिश होने वाले ‘मतवाला’ नामक पत्र का संपादन किया |
  • 1926 से 1935 तक लखनऊ से निकलने वाली ‘सुधा’ नामक मासिक पत्रिका से जुड़े रहे |

निराला की रचनाएँ

निराला ने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य जगत को और भी समृद्ध किया है | उन्होंने हिंदी भाषा को एक नई शैली और अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए अपना एक अविस्मरणीय स्थान बनाया है | निराला ने उपन्यास, कहानी संग्रह, निबंध, बाल-साहित्य तथा काव्य की रचना के साथ-साथ अन्य भाषाओँ की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद भी किया है |

निराला की रचनाओं में आक्रोश और विद्रोह के स्वर दिखाई पड़ते हैं | समाज की विसमताओं, अन्याय और शोषण के खिलाफ किया गया उनका संघर्ष उनकी रचनाओं में भी दृष्टीगोचर होता है |

निराला के उपन्यास

क्रम उपन्यास के नाम प्रकाशन वर्ष
1 अप्सरा 1931
2 अलका 1933
3 प्रभावती 1936
4 निरुपमा 1936
5 कुल्ली भाट 1938
6 बिल्लेसुर बकरिहा 1942
7 चोटी की पकड़ 1946
8 काले कारनामे 1950
9 चमेली अपूर्ण
10 इन्दुलेखा अपूर्ण

निराला के कहानी संग्रह

क्रम कहानी संग्रह के नाम प्रकाशन वर्ष
1 लिली 1934
2 सखी 1935
3 सुकुल की बीवी 1941
4 चतुरी चमार * 1946
5 देवी ** 1948

* सन 1935 में प्रकाशित सखी कहानी संग्रह की कहानियों को ही चतुरी चमार नामक शीर्षक से पुनः प्रकाशित किया गया है। ** इसी तरह ‘देवी’ नामक कहानी संग्रह भी पूर्व प्रकाशित कहानियों का संग्रह है जिसे सन 1948 में प्रकाशित किया गया | इस संग्रह में जान की !’ नामक एक मात्र नई कहानी को शामिल किया गया है |

निराला के काव्य संग्रह

क्रम काव्य संग्रह के नाम प्रकाशन वर्ष
1 अनामिका 1923
2 परिमल 1930
3 गीतिका 1936
4 अनामिका (द्वितीय) 1939
5 तुलसीदास 1939
6 कुकुरमुत्ता 1942
7 अणिमा 1943
8 बेला 1946
9 नये पत्ते 1946
10 अर्चना 1950
11 आराधना 1953
12 गीतगुंज 1954
13 सांध्य काकली
14 अपरा 1956

निबन्ध

क्रम नाम प्रकाशन वर्ष
1 रवीन्द्र कविता कानन 1929
2 प्रबंध पद्म 1934
3 प्रबंध प्रतिमा 1940
4 चाबुक 1942
5 चयन 1957
6 संग्रह 1963

बाल साहित्य

क्रम नाम प्रकाशन वर्ष
1 भक्त ध्रुव 1926
2 भक्त प्रहलाद 1926
3 भीष्म 1926
4 महाराणा प्रताप 1927
5 सीखभरी कहानियाँ 1969

पुराण कथा

क्रम नाम प्रकाशन वर्ष
1 महाभारत 1939
2 रामायण की अन्तर्कथाएँ 1956

अनुवाद

  • रामचरितमानस (विनय-भाग)
  • आनंद मठ (बाङ्ला से गद्यानुवाद)
  • विष वृक्ष
  • कृष्णकांत का वसीयतनामा
  • कपालकुंडला
  • दुर्गेश नन्दिनी
  • राज सिंह
  • राजरानी
  • देवी चौधरानी
  • युगलांगुलीय
  • चन्द्रशेखर
  • रजनी
  • श्रीरामकृष्णवचनामृत(तीन खण्डों में)
  • परिव्राजक
  • भारत में विवेकानंद
  • राजयोग

 

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