रोज की भागदौड़ से थक हारकर हमें जब भी मौका मिलता है कुछ समय खुद के लिए निकाल लेते हैं। तेजी से बदलती लाइफस्टाइल की वजह से आजकल लोगों के पास चैन से सोने तक का समय नहीं है। ऐसे में कई लोग रात की नींद पूरी करने के लिए दिन में सोने लगते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपकी यह आदत Dementia का खतरा बन सकती है।
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Toggleभागदौड़ भरी जिंदगी में अच्छी नींद और खानपान क्यों हैं ज़रूरी?
आज की भागती-दौड़ती जिंदगी में हर कोई सिर्फ काम की दौड़ में लगा हुआ है। काम का दबाव इतना बढ़ गया है कि लोगों के पास खुद के लिए भी वक्त नहीं बचता। बदलती लाइफस्टाइल और बढ़ते वर्क प्रेशर की वजह से हमारी खाने-पीने की आदतें और नींद का पैटर्न (Sleep Cycle) पूरी तरह से बदल चुका है।
स्वस्थ जीवन के लिए क्यों जरूरी है नींद और सही खानपान?
सिर्फ स्वस्थ आहार ही नहीं, बल्कि अच्छी और पूरी नींद भी स्वस्थ जीवनशैली के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन काम के बोझ के चलते लोग अक्सर रात की नींद पूरी नहीं कर पाते, और फिर दिन में इसकी भरपाई करने की कोशिश करते हैं। यह असंतुलन न सिर्फ शरीर को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है।
कई लोगों को दिन की नींद लेना पसंद होता है, और यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा भी बन जाता है। हालांकि, इस आदत के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि दिन में सोने से डिमेंशिया का खतरा बढ़ सकता है। आइए जानें, कैसे दिन की नींद आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है और इससे बचने के उपाय क्या हैं।
दिन की नींद से नहीं होगी रात की भरपाई, बढ़ सकता है डिमेंशिया का खतरा: डॉ. सुधीर कुमार
हैदराबाद के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर कुमार ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में जानकारी दी कि अगर आप सोचते हैं कि रात की नींद की कमी को दिन में पूरा कर सकते हैं, तो यह धारणा गलत हो सकती है। डॉ. सुधीर के अनुसार, दिन की नींद हमारी बायोलॉजिकल क्लॉक के अनुरूप नहीं होती, जिससे डिमेंशिया और अन्य मानसिक विकारों का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने बताया, “दिन की नींद हल्की होती है क्योंकि यह सर्कैडियन क्लॉक से मेल नहीं खाती, जिससे शरीर की नींद संबंधी ज़रूरतें पूरी नहीं हो पातीं।”
कैसे बढ़ता डिमेंशिया का खतरा?
डॉक्टर आगे कहते हैं कि यह तथ्य नाइट शिफ्ट में काम करने वाले वर्कर्स से जुड़ी कई स्टडीज से साबित हो चुका है, जो तनाव, मोटापा, कॉग्नेटिव डेफिशिट और न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों के बढ़ते जोखिम से ग्रस्त हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ग्लाइम्फैटिक सिस्टम, जो मस्तिष्क से प्रोटीन वेस्ट प्रोडक्ट्स को साफ करने के लिए जाना जाता है, नींद के दौरान सबसे ज्यादा सक्रिय होता है। ऐसे में जब नींद की कमी होती है, तो ग्लाइम्फैटिक सिस्टम फेलियर का सामना करता है, जिससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है।
डिमेंशिया के अन्य कारण: जानें क्या कह रहे हैं डॉ. सुधीर कुमार
डॉ. सुधीर कुमार के अनुसार, डिमेंशिया का एक प्रमुख कारण ग्लाइम्फैटिक सिस्टम का फेल होना है, जिससे दिमाग के विभिन्न हिस्सों में असामान्य प्रोटीन जमा हो जाते हैं। इससे अल्जाइमर रोग (एडी) सहित कई न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
खराब नींद की गुणवत्ता के अलावा, उम्र बढ़ना, निष्क्रिय जीवनशैली, हृदय रोग, मोटापा, स्लीप एपनिया, सर्कैडियन मिसलिग्न्मेंट, नशा और डिप्रेशन भी ग्लाइम्फैटिक सिस्टम के फेल होने के कारण बन सकते हैं।
डॉ. सुधीर कहते हैं, “जो लोग अच्छी नींद लेते हैं, वे न सिर्फ लंबे समय तक स्वस्थ रहते हैं, बल्कि उनका वजन नियंत्रित रहता है और मानसिक विकारों का खतरा भी कम हो जाता है। इससे उनकी कॉग्नेटिव क्षमता भी लंबे समय तक बनी रहती है।”
क्यों है जरूरी रात की नींद?
उन्होंने कहा कि आदतन रात में अच्छी नींद लेने से कॉग्नेटिव फंक्शन बेहतर हो सकता है और डिमेंशिया और मानसिक विकारों का खतरा कम हो सकता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि दिन में सोने से शरीर की नेचुरल स्लीप साइकिल खराब हो सकती है, जिससे मस्तिष्क में हानिकारक प्रोटीन का निर्माण हो सकता है, जो डिमेंशिया का एक ज्ञात जोखिम कारक है। इसके अलावा दिन में सोने से व्यक्ति इनएक्टिव लाइफस्टाइल का शिकार हो सकता है, जो डिमेंशिया का एक और जोखिम कारक है।