Table of Contents
Toggleचीता प्रोजेक्ट में नई उम्मीद
भारतीय जमीं पर जन्मे चीते के शावकों की गतिविधियां पूरे प्रोजेक्ट को नई उम्मीद दे रही हैं। वर्तमान में इन शावकों की संख्या 12 है, और इनमें से कई वयस्क होने के करीब हैं। मध्य प्रदेश के कूनो अभयारण्य में बसे इन चीतों में से 12 शावकों में से आठ शावक नामीबिया से लाए गए दो मादा चीतों के हैं।
नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 20 चीतों में से अब तक आठ की मौत ने चीता प्रोजेक्ट को बड़ा झटका दिया है। लेकिन भारतीय जमीं पर जन्मे शावकों की चंचलता इस परियोजना में नई उम्मीद की किरण लेकर आई है। वर्तमान में इन शावकों की संख्या 12 है, और इनमें से कई वयस्क होने के करीब हैं।
मादा शावक डेढ़ साल में व्यस्क हो जाते है
चीता नर शावक लगभग एक साल में और मादा शावक डेढ़ साल में वयस्क हो जाते हैं। इन भारतीय शावकों को प्रोजेक्ट की सफलता की उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि उन्हें नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीतों की तरह जलवायु अनुकूलता की चुनौती का सामना नहीं करना पड़ रहा। ये शावक स्थानीय जलवायु में पूरी तरह से ढल चुके हैं और तेजी से बढ़ रहे हैं।
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और चीता प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि इन शावकों की प्रगति न केवल देश में चीता बसाने के प्रोजेक्ट को उज्ज्वल बना रही है, बल्कि वैश्विक स्तर पर वन्यजीवों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बसाने की संभावनाओं को भी प्रोत्साहित कर रही है।
मध्य प्रदेश के कूनो अभयारण्य में बसाए गए चीतों में मौजूदा समय में 12 शावक हैं, जिनमें से आठ शावक नामीबिया से लाए गए दो मादा चीतों के हैं। इनमें से पांच शावक अकेले मादा चीता ज्वाला के हैं, जबकि तीन शावक मादा चीता आशा के हैं। इसके अलावा, दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 चीतों में मादा चीता गामिनी ने चार शावकों को जन्म देकर इस प्रोजेक्ट में एक नई खुशहाली जोड़ी है।
2023 में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाए गए
मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुल 17 शावकों का जन्म हुआ है, जिनमें से पांच की मौत हो गई है। उल्लेखनीय है कि चीता प्रोजेक्ट के तहत सितंबर 2022 में नामीबिया से आठ और फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाए गए थे। अब तक आठ चीतों की विभिन्न कारणों से मृत्यु हो चुकी है, जिनमें से चार नामीबिया के और चार दक्षिण अफ्रीका के हैं। बचे हुए सभी चीतों को अब बाड़े (इनक्लोजर) में रखा गया है।
आसान नहीं था रास्ता: भूपेंद्र यादव
केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने प्रोजेक्ट के दो साल पूरे होने के अवसर पर दो सालों में आई चुनौतियों का उल्लेख किया और कहा कि विलुप्त हो चुके वन्यजीव को फिर से बसाना कोई आसान काम नहीं था। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना था, जिसे पूरा किया गया है।
उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया में कई तरह की चुनौतियां आईं, लेकिन सभी को पार करते हुए सतर्कता के साथ काम किया गया। आज पूरी दुनिया देश में तेजी से बढ़ रहे शावकों पर ध्यान दे रही है। आगे भी कई मील के पत्थर पार करने हैं।
साल के अंत तक आएगी चीतों की तीसरी खेप
चीता प्रोजेक्ट के दो साल पूरे होने के मौके पर वन और पर्यावरण मंत्रालय ने संकेत दिए हैं कि चीतों की तीसरी खेप जल्द ही भारत आएगी। अनुमान है कि यह खेप इस साल के अंत तक आ जाएगी। तीसरी खेप केन्या से लाए जाने की योजना है, और इस पर केन्या के साथ बातचीत अंतिम चरण में है।
इस योजना के तहत कुल 20 से 22 चीतों को भारत लाने की योजना है। इनमें से आधे चीतों को मध्य प्रदेश के गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में रखा जाएगा, जबकि बाकी चीतों को गुजरात के कच्छ में तैयार हो रहे ब्रीडिंग सेंटर में स्थानांतरित किया जाएगा।